Saturday, February 3, 2007

दोहा

सतनाम धरती धरे, सत्य ही अधर आकास।
चंद्र सूर्य के रूप में संत ही ज्योति प्रकास।।

सतनाम के जपत ही सकल पाप कटि जाय।
जैसे सूर्य प्रकाश ले अंधकार मिट जाय ।।

सतनाम नित गाइये,तजि ईरखा अभिमान।
सहज मुक्त हो जाहू जी, मिहनत लगे न दाम ।

No comments: