Saturday, February 3, 2007

पुन्नी के चंदा


पुन्नी के चंदा कस तोर रूप गोरी,
मोर आंखी म झूलत दिन रात ओ,
अअउ मोर लेवय परान गोरी।
गइया के गोरस म नहाय ले,
नइ मिलय अइसे रूप ओ।
तोर आंखी कजरारी हिरनी कस
तोर माथा म बिन्दी चमकाय बिजली कस।
तोर दूनों बेनी म फुंदरा फीता झूलय
तोर बोली लागय कोइली कस गुरतुर,
जे लेवय मोर परान ओ।
तोर सुरता म बइहा होगे हंव,
किंदरत हंव गली, खेत खार ओ,
न नहाय धोये के न आये पीये के चिन्ता,
तंय ह मोर सब सुरता ल हर लेय हावस।
कइसे खोजंव तोला, खोर गली म
नइ तो छूट जाही मोर परान ओ।
परो दिन मिले रहेंव नहर पार म,
मोर जिनगी के होगे रहिस बेड़ा पार ओ।
अब कब मिलबे गोरी,
नइ तो जाही मोर परान ओ।
गांव के गोटान के पीपर तरी,
छांव म तोर रस्ता देखिहंव,
बँसुरी के धुन मंय ह बजाहंव,
गइया, बइला ल उल्ला करिहंव,
तोर सुध म भुला जाहंव ओ,
तंय ह नइ आबे त,
छूट जाहय मोर परान ओ।
पुन्नी के चंदा कस तोर रूप गोरी,
मोर आंखी म झूलत दिन रात ओ,
अउ मोल लेवै परान गोरी।

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