Saturday, February 3, 2007
पंथी –गीत
एक
चरन म तोरे गंगा बहे
जीहां बाजत हावय नाम के निशान,
संत घर आनंद भये।।
चरण म .............।
तन कर चूल्हा साहेब मन कर बाती
ज्ञान के चढ़े तेलइया हो, देखो हमर रसोइया।
हिय के हंड़िया साहेब, भक्ति कर भात हो,
चित के चटुवा चलइया हो साहेब ।
दया के दाल साहेब, भाव के भाजी हो।
चटनी चाल चतुरइया हो।
आदत के आम, आचार विचारे हे।
प्रेम के पतरी परसाइया हो।
दो
सन्ना नन्ना गुरु मोर हो ललना।
खेले बर आय हे खेलाय बर आय हे।
दुनिया के दुख ल हरे बर आय हे।
दुनिया के दुख न हरे बर आय हे।
गुरु मन मोहना गुरु जग मोहना
मोहत-मोहत चारों जुग मोही डारे हे,
सन्ना नन्ना गुरु मोर हो ललना ।
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