Saturday, February 3, 2007

भूमिका

छत्तीसगढ़ी कविता पीडा की कोख में जन्मी और प्रेम के पर्यक में पली है। इसमें माटी के सुवास और करमा, सुवा,ददरिया का लोकधुन है। श्री राम की लीला-भूमि से महिमा मंडित और कवि वाल्मीकि की शरणस्थली छत्तीसगढ़ कविता का मुख महानदी की लहर है और ओष्ठ “देहरौरी” की तरह रससिक्त । इसके कपोल व्यंजन “बबरा” है । आदिकवि वाल्मीकी और कबीर के पटु शिष्य धऱमदास को सँवारने और चौदह वर्ष के कार्यकाल में श्री राम के चरणों को पखारने की दृष्टि से गौरवान्वित है। छत्तीसगढ़ी कविता एक ओर दूबराज के धान की गमक है तो दूसरी ओर “मोंगरा के फूल” की महक भी है जो तन-मन को चंदन बनाकर अंतर्मन को पावन बनाती है।

डॉ.जे. आर.सोनी की विविध अड़तीस छत्तीसगढ़ी कविताओं का संग्रह “मोंगरा के फूल” में केवल उनकी समय-समय पर लिखी विभिन्न कविताओं का संग्रह है वरन् नामारूप छत्तीसगढ़ी संस्कृति की सुवास और आधुनिक सभ्यता के विकास का समन्वित-संश्लिष्ट स्वरूप भी है। इसमें छत्तीसगढ़ी भाषा और लोक-जीवन को स्पर्शित करके ही कल और आज धड़क रहा है। इसमें जहाँ एक ओर मल्हार की डिडनेश्वरी देवी और डोंगरगढ़ की बमलेश्वरी माता का महात्म्य उद्धाटित है, वहीं बादल-देवता, पितृ-देवता, बसंत पंचमी, गिरौदपुरी मेला, राऊत बाजार, छेरछेरा, माघ–फागुन, रावण-दाह, मंगल, होली, पंथी पर कवितायें मुखिरित हैं।

पनिया दुकाल अर्थात अतिवृष्टि के साथ जेठ के घाम, मोंगरा के फूल, नवतपा, तरिया के पार, बाँस की करील, गाँव के बात, तैत की पुरवाई, पुन्नी के चंदा, आदि प्राकृतिक छटा के उदाहरण हैं। दलितों के मसीहा डॉ. अम्बेडकर के प्रति श्रद्धा-सुमन के साथ कवि ‘साक्षरता गीत’ पढ़व ग’, ‘अक्षर-जोत’, ‘नशाबंदी’, ‘जायरिया’, ‘आयोडिन नमक’ पर छत्तीसगढ़ी कविता लिखकर सरकारी आवश्यकता को लोकजीवन को सौप दिया है। इस तरह कवि अपने प्रयास में सफल है।

“मोंगरा के फूल”-शीर्षक कविता में छत्तीसगढ़ी संस्कृति की महक ही प्रसारित है-

टूरी मुटियारी के खोपा म
झूलय मोंगरा के फूल,
महर-महर करय मोंगरा
खोपा म जावै झूल ।

कवि दोहे की शक्ल में सतनाम-पंथ की व्याख्या गागर में सागर और बूँद में समुद्र की तरह करने में पटु हैं-

सतनाम धरती धरे सत्य ही अधऱ आकास।
चंद सूर्य के रूप में, संत ही ज्योति-प्रकाश।

सतनाम के जपत ही, सकल पाप कटि जाय ।
जैसे सूर्य प्रकास ले, अंधकार मिट जाय ।।

सतनाम नित गाइये, तजि ईरखा-अभिमान
सहज मुक्त हो जाओगे, मिहनत लगे न दाम ।।

कवि डॉ. सोनी युग संदर्भ को ध्यान रखते हुए एक ओर आंचलिकता का आग्रह रखते हैं, तो दूसरी ओर ज्ञान-अनुभव से जीवन दृष्टि भी निर्दिष्ट करते हैं । कवि की सद्भावना को महत्व देते हुए पाठक इनकी कविताओं से साक्षात्कार कर छत्तीसगढ़ से रूबरु होंगे, ऐसी मेरी कामना है ।
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0 डॉ. विनय कुमार पाठक
एम.ए, पी-एच, डी. लिट् (हिन्दी)
एम.ए, पी-एच, डी लिट् (भाषा)
हिन्दी विभागाध्यक्ष
शास.स्नातकोत्तर कन्या महाविद्यालय,
बिलासपुर(छ.ग)

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