Saturday, February 3, 2007

नवतपा


सुरुज देवता के तेज घाम ले
तरिया नरवा सुख गे।
रुख राई घलो सुखागे,
चिरई-चिरगुन के कंठ सुखा गे,
पंथी ल छांल नई मिलय
बड़े बिहनिया ले बड़ घाम
दिन भर के घाम ले तन हो जाथे
अधमरा पसीना पसीना ।
नव दिन ले रइही नवतपा
नव दिन ले रइही नवतपा
नव दिन अपन तन ल घाम ले बचावव।
अपन टूरा टूरी ल बचावव
बड़ घाम ले शरीर जल जाथे।
सुरूज देवता ल मानाव
अपन घाम ल कम करय।
तेज घाम ले जीव जन्तु
कीड़ा मकोड़ा मर जाथे।
किसान मन अपन खेत ल
जोंत के बीज बोये लगथे।
नवतपा के बाद म मानसून आ जाथे।
नवतपा जतके जादा तपथे
ओतके जादा पानी गिरथे ।
सुरुज देवता के घाम
बड़ नीक लगय आम।
आम घाम म पक जाथे
ओकर रस चुचवाथे।
जंगल के चार तेंदू
मउंहा पाक जाथे।
देखके मन ललचा जाथे।
खेत खार के रुख-राई
महर महर महकथे
देखते मन ललचा जाथे।
सुरुज देवता के घाम में जी
हो जाथे हलकान।
कारी बदरिया दे दे पानी
वेन उपवन मन हो जाये सांत ।

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