Saturday, February 3, 2007

खोपा म गजरा



तोर जूड़ा खोपा म
झूलय मोंगरा के गजरा ।
तंय खड़े खड़े देखस
अपन अंचरा ।
कब आवय मनके
मनमोहना मितवा ।
खड़े निहारय अपन
दुवार खड़े अंगना ।
तोर माथा म बिंदिया,
टिकुली चमकत रहय ।
आंखी म काजर करिया
बादर कस लउकत, घपटत रहय ।
कान म झुमका बाली झूलय
नाक म नथनी डोलय ।
गर म गजरा हार ।
पांव पैरी रुन-झुन बाजै ।
लेवय पिया के परान ।
हांसय त बिजली चमकत गिरय ।
नयनन से करय वार ।
चलय त नागिन लगय,
गावय ददरिया, करमा,
सबके हारय मन पीरित ।
मन मोहनी तंय रहे
सिखा गय
परेम,
पीरित,
पियार ।

No comments: