Saturday, February 3, 2007
बसंत पंचमी आगे रे
चलव संगवारी हो......
बसंत पंचमी आगे रे।
आवव झूमव नाचव रे,
बजावव नगाड़ा दम दमा दम,
झांझ मजीरा झम झमा झम,
रंग गुलाल अबीर उडा़वव,
धूर, माटी के चंदन लगावव,
मन डोले रे माघ फगुनवा,
रस घोले रे माघ फगुनवा,
मन डोले रे माघ फगुनवा ,
रस घोले रे माघ फगुनवा।
अमरइया के आमा ह बउराये,
भौरा, मधुमक्खी हे झूम-झूम गुनगुनाये ।
कारी कोयलिया ह मीठे धुन सुनाये।
चेलिक, मुटियारी के मन ह बहक जाये
तन ह बहके रस ह टपके,
भौरा मन रसिक बन झपटे
संगी संगवारी म मस्ती भरागे,
गावव नाचव झूमव रे,
चलव संगवारी हो.....
बसंत पंचमी आगे रे।
बसंती बयार चलत हे पुरवाई
गेहूं के बाली ह लहर लहर लहराये,
सरसों के फूल दिखय पितांबर ओढ़ाये।
धरती माँ के होवय हे नव श्रंगार रे
रुख ले पाना झरे, झर झर गिरे
पवन चले सरर, सरर, चले पुरवाई।
मन डोले रे माघ फगुनवा।
रस घोले रे माघ फगुनवा।
चलव संगवारी हो....
बसंत पंचमी आगे रे।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment