Saturday, February 3, 2007
पीतर देवता
हे पीतर देवता,
अपन संतान मन ला,
सत्त के दद्दा बता ।
तंय जीवय रहे त,
खाये-पीये ले नई देवय।
कपड़ा ओनहा कुरता
पहिरे नई देवय अउ लात मारय।
सुघ्घर दार, भात,
खीर पूड़ी साग नई देवय।
पर तोर मरे ले,
घर अउ गांव भर म तिहार मनाथे।
खीर-पूड़ी, दार-भात
बरा-सोंहारी, मालपुआ खावथें।
पंडित ल नवा कपड़ा
छाता, सोना,चांदी,
गाय-बछिया दान म देथें।
जीयत मनखे के पूजा
नइ करय।
मरे मनखे के पूजा करथें।
ये बड़ विचित्र बात हे।
हे पीतर देवता
सत्त के सद्दा बता।
पीतर-पाख याये हे।
सब अपन दाई ददा ल
बड़े सुबेरे पानी देथें।
बढ़िया बढ़िया पकवान,
बनाके अपन खा जाथें।
तोर नाँव लेके।
हे पीतर पुखा देवता
हमन खाथन, तुमन पावा।
हे पीतर देवता
सत्त के सद्दा बता।
इहें सरग-नरक
घर म चौरासी धाम,
दाई ददा ल पूजय नहीं।
पथरा ल पूजय जाय ।
जीयत मनखे ह
आसीस देही ।
जड़ ह का देही।
हे पीतर देवता
सत्त के दद्दा बता।
हे मोर संतान मन,
जीयत सनखे ल पूजब
इहें सरग
अउ
बैंकुठ के सुख मिल जाही।
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