Saturday, February 3, 2007
चल रावन मारे जाबो
हमर गांव अउ शहर
म रावन हावय।
ओला कोनो नई मारय।
पुतना बना के,
दस मुंड़, बीस हाथ बनाके,
ओमा फटाका ल भर देथें।
येला कई सौ बरस ले
जलावथन।
परन्तु येहा नई मरत ए।
उल्टा लाखों म जनम
ले लेथें ।
रावण ह ब्राम्हण
जाति म जनम लेहे रहीस।
बड़ ज्ञाना, महापंडित
बलशाली रहीस।
सब देवता ले हरा देवय
ओकर संग कोनो नई लड़ सकय,
रावण ह बड़े अहंकारी रहीस,
नता गोता ल नई चिन्हय,
सब ला मारे कस करय।
मुड़पेलहा बइला रहीस,
सब ला धकिया देवय।
अतका बलशाली अउ
पराक्रमी रावण ल।
निहत्था एक झन राम क्षत्री ह,
मार दीस,
लंका के राज सउंप के
अउ अयोध्या आगे।
अउ राम राज्य लोकतंत्र
के सुरुआत करथे।
तब ले पुतला दहन
करत हें।
ऐ बात नोहय।
सब मनखे के भीतर
म रावण हावय।
काम, क्रोध, लोभ, अहंकार ह रावण ए।
जे मनखे ह
येला जीत लेइस,
ओ राम बन जाथे।
ओ ह महात्मा,
महामानव बन जाथे।
अपन भीतर के रावण ले,
जलावव मारव ग।
तभे भाईचारा, सद्भावना,
सामाजिकता, समरसता आही ।
चला रावण मारे बर सब झन जाबो।
सब जुर-मिल के
भीतर के रावण,
अज्ञान, छल, कपट, प्रपंच,
अउ बाहर के रावण,
भ्रष्टाचार, बेईमानी, हिंसा प्रवृत्ति,
व्यभिचार, अहंकार ल जलाबो।
तभे रावण ह मरही।
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