Saturday, February 3, 2007

लेखक परिचय




डॉ.जे.आर.सोनी
(Dr.J.R.SONI)

जन्म तिथि
08.06.1954

जन्म स्थानग्राम टिकारी, बिलासपुर

शिक्षा
एम.ए.(लोक प्रशासन), विधि स्नातक, व्यवसाय प्रबंध डिप्लोमा, पी.एच.डी

पुरस्कार/सम्मान

0डॉ. अम्बेडकर साहित्य सम्मान
0नई दिल्ली-1994, हिंदी सेवी सम्मान
0ग्वालियर-1996, सत्यध्वज साहित्यकार सम्मान
0भिलाई-1996, दीपाक्षर साहित्य सम्मान भिलाई 1999
0भारतीय कलाकार संघ सम्मान, 1999
0दुर्ग जिला हिंदी साहित्य समिति-1999
0गायत्री शक्तिपीठ सम्मान दुर्ग-1999
0बाबू रेवाराम साहित्य सम्मान रतनपुर-1999
0प्रयास प्रकाशन सम्मान बिलासपुर-1999
0विक्रम शीला विद्यापीठ से वाचस्पति सम्मान- 1999
0जेमिनी अकादमी पानीपत, आचार्य की मानद उपाधि
0म.प्र. लेखक संघ-आंचलिक साहित्यकार सम्मान- 2000
0सहस्राब्दी हिंदी सम्मान
0राजेश्वरी प्रकाशन साहित्य सम्मान, गुना
0सृजन सम्मान 2000 उज्जैन
0मेघानाथ कन्नौजे स्मृति सम्मान 2001
0बिलासा कला सम्मान 2002
0राष्ट्रभाषा सम्मान 2002
0सृजन सम्मान रायपुर 2003
0साहित्य वैभव सम्मान बालाघाट 2006

कृतियाँ –

-सतनाम के अनुयायी
- सतनाम की दार्शनिक पृष्ठभूमि
-बबूल की छाँव
-नगमत
-पछतावा
-रंग झांझर
-मारीशस-एक लघु भारत
-श्रीलंका-यात्रा संस्मरण।

।। छत्तीसगढ़ी रचनाएं ।।

-मोंगरा के फूल
-मितान-उढ़रिया
-चन्द्रकला

इंटरनेट पर ऑनलाइन किताबें

- पछतावा (इंटरनेट पर छत्तीसगढ़ का पहला हिन्दी उपन्यास)
- चन्द्रकला (इंटरनेट पर छत्तीसगढ़ी की पहला उपन्यास)
- मोंगरा के फूल

विदेश भ्रमण

-मारीशस,
-श्रीलंका
- ग्रेट ब्रिटेन

संप्रति

संयुक्त संचालक, नगरीय प्रशासन एवं विकास, रायपुर, छ.ग.

पता
डी-95, गुरुघासीदास कॉलोनी, न्यू राजेन्द्र नगर रायपुर (छत्तीसगढ़)
मोबाईल-98271-11018, फोन-0771-2429644, निवास- 4966826

समरपन

प्रेरणास्रोत दादा जी
स्व. रामलाल जी सोनी
ल समरपित

भूमिका

छत्तीसगढ़ी कविता पीडा की कोख में जन्मी और प्रेम के पर्यक में पली है। इसमें माटी के सुवास और करमा, सुवा,ददरिया का लोकधुन है। श्री राम की लीला-भूमि से महिमा मंडित और कवि वाल्मीकि की शरणस्थली छत्तीसगढ़ कविता का मुख महानदी की लहर है और ओष्ठ “देहरौरी” की तरह रससिक्त । इसके कपोल व्यंजन “बबरा” है । आदिकवि वाल्मीकी और कबीर के पटु शिष्य धऱमदास को सँवारने और चौदह वर्ष के कार्यकाल में श्री राम के चरणों को पखारने की दृष्टि से गौरवान्वित है। छत्तीसगढ़ी कविता एक ओर दूबराज के धान की गमक है तो दूसरी ओर “मोंगरा के फूल” की महक भी है जो तन-मन को चंदन बनाकर अंतर्मन को पावन बनाती है।

डॉ.जे. आर.सोनी की विविध अड़तीस छत्तीसगढ़ी कविताओं का संग्रह “मोंगरा के फूल” में केवल उनकी समय-समय पर लिखी विभिन्न कविताओं का संग्रह है वरन् नामारूप छत्तीसगढ़ी संस्कृति की सुवास और आधुनिक सभ्यता के विकास का समन्वित-संश्लिष्ट स्वरूप भी है। इसमें छत्तीसगढ़ी भाषा और लोक-जीवन को स्पर्शित करके ही कल और आज धड़क रहा है। इसमें जहाँ एक ओर मल्हार की डिडनेश्वरी देवी और डोंगरगढ़ की बमलेश्वरी माता का महात्म्य उद्धाटित है, वहीं बादल-देवता, पितृ-देवता, बसंत पंचमी, गिरौदपुरी मेला, राऊत बाजार, छेरछेरा, माघ–फागुन, रावण-दाह, मंगल, होली, पंथी पर कवितायें मुखिरित हैं।

पनिया दुकाल अर्थात अतिवृष्टि के साथ जेठ के घाम, मोंगरा के फूल, नवतपा, तरिया के पार, बाँस की करील, गाँव के बात, तैत की पुरवाई, पुन्नी के चंदा, आदि प्राकृतिक छटा के उदाहरण हैं। दलितों के मसीहा डॉ. अम्बेडकर के प्रति श्रद्धा-सुमन के साथ कवि ‘साक्षरता गीत’ पढ़व ग’, ‘अक्षर-जोत’, ‘नशाबंदी’, ‘जायरिया’, ‘आयोडिन नमक’ पर छत्तीसगढ़ी कविता लिखकर सरकारी आवश्यकता को लोकजीवन को सौप दिया है। इस तरह कवि अपने प्रयास में सफल है।

“मोंगरा के फूल”-शीर्षक कविता में छत्तीसगढ़ी संस्कृति की महक ही प्रसारित है-

टूरी मुटियारी के खोपा म
झूलय मोंगरा के फूल,
महर-महर करय मोंगरा
खोपा म जावै झूल ।

कवि दोहे की शक्ल में सतनाम-पंथ की व्याख्या गागर में सागर और बूँद में समुद्र की तरह करने में पटु हैं-

सतनाम धरती धरे सत्य ही अधऱ आकास।
चंद सूर्य के रूप में, संत ही ज्योति-प्रकाश।

सतनाम के जपत ही, सकल पाप कटि जाय ।
जैसे सूर्य प्रकास ले, अंधकार मिट जाय ।।

सतनाम नित गाइये, तजि ईरखा-अभिमान
सहज मुक्त हो जाओगे, मिहनत लगे न दाम ।।

कवि डॉ. सोनी युग संदर्भ को ध्यान रखते हुए एक ओर आंचलिकता का आग्रह रखते हैं, तो दूसरी ओर ज्ञान-अनुभव से जीवन दृष्टि भी निर्दिष्ट करते हैं । कवि की सद्भावना को महत्व देते हुए पाठक इनकी कविताओं से साक्षात्कार कर छत्तीसगढ़ से रूबरु होंगे, ऐसी मेरी कामना है ।
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0 डॉ. विनय कुमार पाठक
एम.ए, पी-एच, डी. लिट् (हिन्दी)
एम.ए, पी-एच, डी लिट् (भाषा)
हिन्दी विभागाध्यक्ष
शास.स्नातकोत्तर कन्या महाविद्यालय,
बिलासपुर(छ.ग)

दू आखर


हिन्दी म सोंच के छत्तीसगढ़ म कविता लिखई बड़ कठिन काम हे । जब तक छत्तीसगढ़ ह राजभासा नई बनही तब तक ओकर विकास नइ होवय, ये ह मोर मत हवय । छत्तीसगढ़ी ह समृद्ध भाखा बने के लायक हे । छत्तीसगढ़ी-सब्दकोस अउ कविता, गीत, लघुकथा, कहिनी, लोकगाथा, उपन्यास, निबंध, रमायेन, महाभारत सही सब्बे विसय में साहित्य मिल जाही, फेर भाखा बनाये म का देरी हे ? कमी हे त सिरफ बिसवास के । हमन ल ढाढस बाँध के लिखे बर परही ।

“मोंगरा के फूल” छत्तीसगढ़ भाखा के रुप म मोर पहिली काव्य-संग्रह आय । अइसे तोर मोर सात ठन किताब छप के आगे हे, ये ह आठवाँ आय । सतनाम के अनुयायी “सतनाम की दार्शनिक पृष्ठभूमि” ग्रंथ-काव्य संग्रह (हिन्दी), बबूल की छाँव (कहानी-संग्रह), मितान (छत्तीसगढ़ी), नगमत (हिन्दी), ‘उढ़रिया’ उपन्यास (छत्तीसगढ़ी), पछतावा (हिन्दी) । छत्तीसगढ़ी भाखा ल पोठ करे के प्रयास हे ।

प्राचीन काल म मल्हार के माटी के सौंधी महक संसार म फइले रहीस । माता डिडनेश्वरी के असीम किरपा हावय । दूबराज धान के गमक अउ राहर, तिवरा-भाजी, पताल-मिरचा के चटनी, बसी खाय म बड़ मजा आथे । सत के रद्दा सदमार्ग के संत गुरु घासीदास जी के ग्यान के मारग म चले विसय वस्तु बने हें । ‘छत्तीसगढ़ दरसन’ कविता म पुरा छत्तीसगढ़ के बरनन हावय । डोंगरगढ़ के बमलेश्वरी देवी, बादर-देवता, बिदाई, खोरपा म गजरा, मोंगरा के फूल, गाँव के बात, दलितों के मसीहा, गिरौदपुरी मेला देएखा देना, पंथी-गीत, मंगल-गीत, सुसका भाजी अउ दार, पुन्नी के चंदा, राउत बजार, बसंत पंचमी आगे अउ कई ठन हावय । भूमिका लेखन के कारज छत्तीसगढ़ के महान विद्वान युग पुरुस प्रो.डॉ विनय कुमार पाठक, निर्देशक, प्रयास प्रकाशन, बिलासपुर द्वारा करे अउ महत्तव बढ़ गे हे । मय सत-सत नमन करत हंव अउ अभार मानत हंव । छत्तीसगढ़ के विद्वान मन ले आसीस के अपेक्षा हे । “मोंगरा के फूल” छत्तीसगढ़ के माटी ल महर महर महकाये हे, पाठक मन ले सुझाव आमंत्रित हे । कविता संग्रह के परकासन बर वैभव प्रकासन रायपुर के सुधीर शर्मा के अभार मानत हंव । अऊ जयप्रकाश मानस के उदिम ला घलोक मंय हर परनाम करना चाहत हंव जेखर कारन येही किताब ह इंटरनेट मं दुनिया के छत्तीसगढ़ी पाठक मन बर पहुँच गेहे ।

0डॉ.जे.आर. सोनी

दलितमन के मसीहा



तोर होवय जय जयकार हो
अम्बेडकर बाबा जय होवय तोर।
दलित शोषित पिड़ित ल पहिचाने
दीन हीन के दुख ल जाने,
मनखे मनखे ल एक जाने,
तोर होवय जय जयकार हो ।

भारत के संविधान बनाके
जात पात के भेद मिटाके।
सब ला शिक्षा सब ला न्याय
समाज म समान अधिकार दिलाये।
तोर नमन करंव लाखों बार हो

सब झन ल, सोये ले जगाये,
टूरा टूरी ल पढ़े बर सिखाये
गिरे पड़े ल एक बनाये
अपन अधिकार बर लड़े बर सिखाये
तोर गुन के हावय भण्डार हो

जन जन म जागृति लाये
संविधान म अधिकार लाये
करोड़ों जन से एक लड़े
तभो ले तंय नई डरे
तोर साहस रहीस अपार हो

अम्बेडकर....................।

साक्षरता गीत



उठो रे किसान जागो रे जवान

एक हाथ म नांगर तुतारी,
एक हाथ म मशाल।
एक भरय पेट ल
दूजे भरय दिमाग।
उठो रे किसान जागो रे जवान ।

आगू आगू हम चलत हन
पीछू पीछू आवव
सिलेट पेंसिल धरव हाथ म
क से कलम म से मकान लिखव
अ आ इ ई उ ऊ
लउहा लउहा सिखव।
सबके संग चलव ग, सब के संग चलव ग ।
एक हाथ म नांगर तुतारी,
एक हाथ म मसान
उठो रे किसान जागों रे जवान।

बिन पढ़े लिखे बिन नई होवय उद्धार
नरक जाय ले बांचव
अपन संग परानी ल पढ़ावव
तभे होहय देश अउ हमर विकास
उठो रे किसान जागो ऱे जवान।
सबके संग चलव ग, सब के संग चलव ग ।

जय माँ डिडनेश्वरी देवी


जय हो जय हो डिडनेश्वरी मईया
जय हो जय हो डिडनेश्वरी मईया
तोर लीला हावय अपार हो,
डिडनेश्वरी मइया जय होवय तोर ।
गाँव मलार म तोर मंदिर हे,
सोना के भण्डार हो।
डिडनेश्वरी मइया जय होवय तोर ।
जय माँ डिडनेश्वरी देवी मईया
चइत मनरात्र म पूजा होथे
घी के जोत जलाये हो ! जय हो जय हो ।.....
कुंवार नवरात्रि म जँवारा बोथें
पूजय लाखों लोग हो ।
डिडनेश्वरी मइया जय होवय तोर ।
जय माँ डिडनेश्वरी देवी मईया
तोर दुवारी ले कोई खाली नई आवै,
देवत पुत्र, धन भंडार हो ! जय हो जय हो ।.......
तोर मुरतिया चोरी हो गिस,
तंय आये अपन निवास हो
तोर महिमा हावय अपार हो।
जय हो जय हो डिडनेश्वरी मइया ।
गिर पड़े छोटे के देवी
तोर माँ के ममता अपार हो,
केंवट ढीमर समाज हे तोर पुजारी
सेवा करत दिन रात हो।
तोर ज्योति के फैलय प्रकाश
तोला पूजय सब संसार हो।
जय हो जय हो डिडनेश्वरी मइया ।
जय हो जय हो डिडनेश्वरी मइया ।